Swami Vivekananda Chicago Famous Speech

Swami Vivekananda (स्वामी विवेकानंद) का शिकागो (Chicago) का मशहूर भाषण

Swami Vivekananda (स्वामी विवेकानंद) का शिकागो का मशहूर भाषण | Swami Vivekananda Chicago Famous Speech

जब भी स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) जी की बात होती है तो शिकागो की धर्म संसद में दिए गए भाषण की चर्चा ज़रूर होती है। स्वामी विवेकानंद जी को बहुत थोड़े में अगर जानना है तो शिकागो भाषण से जाना जा सकता है। शिकागो में दिए गए भाषण से विश्व में भारत की छवि मजबूत होकर उभरी थी। आइये जानते हैं शिकागो में दिए गए स्वामी विवेकानंद जी के भाषण के कुछ अंश।

लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका धन्यवाद करता हूं: Swami Vivekananda

अमेरिका के बहनो और भाइयो, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल अपार हर्ष से भर गया है। मैं दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं। और मैं आपको सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका धन्यवाद करता हूं।

सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला

मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।

मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं: Swami Vivekananda

मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहनशीलता पर ही विश्वास नहीं करते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं।

मुझे गर्व है कि मैं ऐसे देश से हूं: Swami Vivekananda

मुझे गर्व है कि मैं उस ऐसे देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली।

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उन्हें पाल-पोस रहा है।

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रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं

बहनो और भाइयो, मैं इस मौके पर एक श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज़ करोड़ों लोग दोहराते हैं। ”जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है। ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं।

गीता उपदेस की बात भी की 

मौजूदा सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश इसका प्रमाण है: ”जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं।”

यह धरती खून से लाल हुई

सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को अपने शिकंजों में जकड़ रखा है। उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है। न जाने कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ और कितने देश मिटा दिए गए।

कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश होने वाला होगा

यदि ये ख़ौफ़नाक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज़्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है। लेकिन उनका वक़्त अब पूरा हो चुका है। मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा। चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से।

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